आज यह दीवार,

मेरी प्रोफाइल देखें ...
शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...

Thursday, October 14, 2021

check mail reciepients



--
If you want to give us any information related to civil construction or to get some information from us, we are always ready to welcome your honor.

Thanks With Regards,


Pawan Kumar Singh
Consulting Engineer (B.Tech-Civil)
LUCKNOW, UP
India.


This e-mail (including any attachments) is intended for the addressee(s) stated above only and may contain proprietary, confidential or privileged information protected by law. You are hereby notified that any unauthorized reading, disclosure, copying or distribution of this e-mail or use of information contained herein is strictly prohibited and may violate rights to proprietary information. If you are not the intended recipient, you should not disseminate, distribute or copy this e-mail. Please notify the sender immediately and destroy all copies of this message and any attachments contained in it.We may monitor emails to check they meet legal, regulatory and professional standards and to keep our network secure. If you email us, we may keep a record of your name and email address. We protect our system from malicious software and viruses. Help us to protect the environment, Please don't print this email unless you have to ! Go Green! 
Kindly ignore the mail if you are not the intended recipient.

Thursday, August 17, 2017

मोदी किस-किस को सुधारेगा ?

मोदी किस-किस को सुधारेगा ? रेल यात्रा के दौरान लेखक के साथ घटित एक घटना

मोदी किस-किस को सुधारेगा ?

मोदी किस-किस को सुधारेगा
ट्रेन का दरवाजा खुला और एक 6 फीट का तंदरुस्त आदमी अन्दर आया। अन्दर आते ही बोलना शुरू कर दिया,
“किसने बंद किया था दरवाजा?”
दरवाजे के पास खड़े 2-3 आदमियों में से कोई भी कुछ न बोला।
तभी शेर की तरह दहाड़ता हुआ वो शख्स फिर बोला,
“बताओ किसने बंद किया था? तुम लोग कभी नहीं सुधर सकते। मोदी किस-किस को सुधारेगा? बताओ मुझे मैं अभी सुधारता हूँ।अभी 10 मिनट दरवाजा न खोलते तो ठण्ड से शरीर ठंडा पड़ जाता और कहीं न कहीं हाथ छूटता और मैं गिर जाता।”
ये घटना है 28 दिसम्बर की है । साल का सबसे ठंडा महीना और सबस से ठन्डे दिन चल रहे थे। मैं अमृतसर से किसी काम के लिए दिल्ली जा रहा था। ट्रेन में काफी भीड़ थी। किसी तरह मैं एक सीट प्राप्त करने में सफल रहा। वो भी ऊपर जो जगह शायद सामान रखने के लिए बनायी जाती है। ठण्ड होने के कारन ट्रेन के पास बैठे कुछ लोगों ने दरवाजा बंद कर दिया था। स्टेशन आने पर वे दरवाजा खोल देते थे। और ट्रेन चलने पर बंद कर देते थे।

ट्रेन के अन्दर भीड़ बढ़ चुकी थी। रात के तकरीबन 12:20 बजे रहे होंगे। नींद मुझ पर हावी हो रही थी। तभी अचानक मैंने आवाज सुनी,
“दरवाजा खल दीजिये बाबू साहब। पहले ही एक ट्रेन छूट गयी है। इसके बाद कोई दूसरी ट्रेन नहीं है सुबह तक।”
ऐसी ही कुछ मिन्नतें उन्होंने बार-बार की लेकिन अन्दर से एक ही जवाब बाहर जा रहा था कि अन्दर जगह नहीं है। ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी। जैसे-ऐसे ट्रेन की स्पीड बढ़ रही थी वैसे-वैसे बहार से आवाज लगते लोगों का लहजा बदल रहा था,
“अबे दरवाजा खोल। सुनाई नहीं पड़ रहा क्या बे?”
ऐसे ही बोलते-बोलते वो गाली-गलौच पर आये लेकिन तब तक ट्रेन तेज हो चुकी थी।
इस चीज ने मेरे मन पर एक अघात किया। मैं समझ नहीं पा रहा था कि एक इन्सान इतना निर्दयी भी हो सकता है। क्यों एक इन्सान खुद को कभी दुसरे की जगह रख कर कोई फैसला नहीं लेता? ऐसे ही सवाल मेरे दिमाग में चल रहे थे और नींद एक बार फिर आँखों पर हावी हो चुकी थी।
समय 3:30 बजे का हो चुका था। ट्रेन एक बार फिर सोनीपत स्टेशन पर रुकी। न कोई चढ़ा न उतरा। ट्रेन फिर से चल पड़ी। तभी ट्रेन के बाहर से किसी की आवाज आने लगी। लेकिन दरवाजा न खोला गया। फिर खिड़की तक हाथ पंहुचा कर किसी ने खड़काया। ये देखने पर दरवाजे के पास बैठे आदमी दर्वे का पास से हटे और दरवाजा खोला।
ट्रेन का दरवाजा खुला और एक 6 फीट का तंदरुस्त आदमी अन्दर आया। अन्दर आते ही बोलना शुरू कर दिया,
“किसने बंद किया था दरवाजा?”
दरवाजे के पास खड़े 2-3 आदमियों में से कोई भी कुछ न बोला।
तभी शेर की तरह दहाड़ता हुआ वो शख्स फिर बोला,
“बताओ किसने बंद किया था? तुम लोग कभी नहीं सुधर सकते। मोदी किस-किस को सुधारेगा? बताओ मुझे मैं अभी सुधारता हूँ। अभी 10 मिनट दरवाजा न खोलते तो ठण्ड से शरीर ठंडा पड़ जाता और कहीं न कहीं हाथ छूटता और मैं गिर जाता।”
तभी अपनी सफाई में उनमें से एक आदमी बोला कि दरवाजे के पास से हटने और दरवाजा खोलने में टाइम तो लगता ही है।
तब उस आदमी ने एक ऐसा भाषण दिया जिसने समाज की सच्चाई को जीवंत कर दिया। उसने बोलना शुरू किया,
“जब ट्रेन में आग लगती है या कोई दुर्घटना होती है तो तुम जैसे लोगों की वाह से कोई अपनी जान नहीं बचा पाता। तुम सब लोग बस हम जैसों के आगे बोल सकते हो। सोते हुए आदमी को जगा कर एक किन्नर पैसे मांग के ले जाती है तब किसी की आवाज नहीं निकलती। ये जो ट्रेन में इतने लोग दिख रहे हैं ना, सब मुर्दा हैं। मरे हुए लोगों से भरी पड़ी है ये ट्रेन। अभि९ तुम्हें मार के चला जाऊं तो कोई कुछ नहीं बोलेगा। इन जैसे लोगों की वजह से ही गुंडों की हिम्मत बढ़ जाती है। लेकिन अगर सब एक हो जाये तो 4 आदमी तुम्हारा क्या बिगाड़ सकते हैं? बस एक साथ तुम लोग दरवाजा ही बंद कर सकते हो।”
इतना सुन ने के बाद कोई कुछ न बोला या फिर बोल न सका। और ओ बोल रहे थे वो बस यही बोल रहे थे कि बिलकुल सही कहा।
यहाँ सवाल यह है कि उसने सही कहा ये बोलने वाले लोग उस वक़्त कहाँ थे जब ये सब हुआ? वो तब कहाँ थे जब ट्रेन छूट गयी।
दरवाजा न खुलने के कारन कई लोगों के साथ ये हादसा होता होगा। या जो भी हादसे होते हैं ऐसे लोगों का उनमें कुछ न कुछ योगदान जरूर होता है।
समाज की यही सच्चाई है। एक भाषण से सब प्रभावित तो होते हैं लेकिन कुछ समय के लिए। हमें अपनी सोच को बदल न होगा। नहीं तो इस समाज में ही हमारा कोई अपना लोगों के बुरे व्यव्हार का शिकार बन जाएगा और तब हम खुद समाज को दोष देंगे।
इसलिए अभी से खुद को समाज का एक हिस्सा मान कर सच्चाई की आवाज बुलंद करें। धन्यवाद।