जी बहुत बड़ा हूँ मै,
पर सच कहू तो लंगड़ा हूँ मै ,
सच्चाई को देखकर
शर्म से गड़ा हूँ मै
एक साकी पर ही विश्वास था,
बस वो ही मेरी आस था,
होंगे हुज़ूर आप दौलत वाले
और क्या मेरे पास था
विश्वास का नाम भी धोखा निकला हाय क्या करू?
साकी ही बैसाखी छीने तो मै क्या करू?
धोखे की रोटी खाता हूँ,
गम की सब्जी ही पाता हूँ,
अश्को को पी जाता हूँ
जब मैखाने जाता हूँ,
नाम लेके साकी का अधरों पर पैमाना रखू?
पर साकी ही बैसाखी छीने तो मै क्या करू?
हालातो ने मशहूर किया है,
कुछ कहने पर मजबूर किया है,
बस आसू से रिश्ता मेरा
खुशी ने मुझको दूर किया है,
इतना मर मर की जिया हूँ अब और कितना मरू?
पर साकी ही बैसाखी छीने तो मै क्या करू?
झूठ नहीं जानता, इसलिए लंगड़ा हूँ
छल नहीं मानता, इसलिए लंगड़ा हूँ
सीना नहीं तानता, इसलिए लंगड़ा हूँ,
ये दुनिया कुछ कहे मुझे फर्क नहीं
अगर साफ़ रहना, साफ़ कहना, जुल्म ना सहना
लंगड़ापन है तो मै लंगड़ा ही सही
तो मै लंगड़ा ही सही..........
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