फ़ौज में कभी-कभी परेड को आदेश मिलता है कि,पीछे मुड और सारी परेड आगे चलते-चलते एकदम से पीछे लौट चलती है.पी.एस.डी.एवं एन.सी.सी.की ट्रेनिंग क़े दौरान हवलदार सा :क़े आदेश पर हम लोगों ने भी ऐसा किया है. आज अपने पुराने कागजात पलटते -पलटते १९६९ -७० क़े दौरान लिखी अपनी यह लघु तुक-बन्दी जिसे २६ .१० १९७१ को हिन्दी टाईप सीखते समय टाईप किया था नज़र आ गई ,प्रस्तुत है-
जो ये भीष्म प्रतिज्ञा न करते देवव्रत , तो यह महाभारत क्यों होता?
होते न जन्मांध धृतराष्ट्र , तो यह महाभारत क्यों होता?
इन्द्रप्रस्थ क़े राजभवन से होता न तिरस्कार कुरुराज का, तो यह महाभारत क्यों होता?
ध्रूत-भवन में होता न चीर -हरण द्रौपदी का, तो यह महाभारत क्यों होता?
होता न यदि यह महाभारत, तो यह भारत,गारत क्यों होता?
होता न यदि यह महाभारत, तो यह गीता का उपदेश क्यों होता?
होता न यदि यह गीता का उपदेश, तो इन वीरों का क्या होता?
मिलती न यदि वीर गति इन वीरों को, तो इस संसार में हमें गर्व क्यों होता?
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