मुझसे क्यों खेलती है जिंदगी?
क्या मुझे झेलती है जिंदगी?
सच कहू मुझको लगता है
मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी
नन्हे कदम, जग नया नये रिश्ते
सांचो मे ढलते हम, हम से बदलते रिश्ते
दूर के रिश्ते पास के रिश्ते
रिश्तो मे उलझकर निकलते से रिश्ते
क्या बस रिश्तो को समेटती है ज़िंदगी..
सच कहू मुझको लगता है
मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी
रोती खुशी, हसती खुशी, चिल्लती खुशी, बलखाती खुशी
बाहो मे भरकर, गले से लिपटकर
अपनो का अहसास कराती खुशी
फिर आँख मिचौली क्यू खुशी से खेलती है ज़िंदगी?
सच कहू मुझको लगता है
मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी
आनी मौत बचकानी मौत,शमशानी मौत, अंजानी मौत पहचानी मौत
मौत से लड़ते लड़ते एक दिन आ जानी मौत
बहुत खुशनसीब होते है है वो नसीब वाले
जिन्हे नसीब होती है रूहानी मौत
हर चौराहे पर है मौत खड़ी, बस उसे ठेलती है ज़िंदगी?
सच कहू मुझको लगता है,,मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी
सच कहू मुझको लगता है...मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी..........
नमस्कार मैं पवन कुमार भारतीय आपका स्वागत करता हूँ,मैं पेशे से सिविल इंजीनियरिंग हूँ| आपके मनोरंजन के लिये मैने ब्लॉग पे कुछ कविताएं, कहानियाँ इत्यादि भी लिखी हैं उनका भी आनंद लें,आशा है आपको मेरा ब्लॉग पसंद आएगा,आपसे अनुरोध है की निःसंकोच अपने विचारो से कमेन्ट के माध्यम से मुझे अवगत कराये, मुझे आपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार रहेगा । यदि ब्लॉग में कोई सुधार किया जाना चाहिए या और सुन्दर बनाने में आप कोई सहायता प्रदान करना चाहते हैं तो निःसंकोच मुझसे संपर्क कर सकते हैं|
आज यह दीवार,
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शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं न छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी न छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...
Thursday, September 8, 2011
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