आज कलम फिर बरसी है बादलो की तरह, पढने वाले पढ़ रहे है पागलो की तरह,
मै तैयार हू मिट जाने को परवाना बनकर, और वो तैयार है दीपक में लौ की तरह....
मिले थे कई गैर, मैं मिल लिया गले, और फिर बिछड गए वो रास्तो की तरह
विश्वास तोडा दुनिया ने मगर हम भी है सनम, हिफाजत में तेरे घर के जालो की तरह
फूल दे रहे हो मंशा साफ़ कह देना, चुभ ना जाना शूल बन कहीं भालो की तरह
धुआ जो उठ रहा है ये आसमान में, जल रहा है दिल मेरा एक बस्ती की तरह
समंदर की सैर पर निकल दिया "पवन कुमार" , फर्क क्या कहे कोई कागजी कस्ती की तरह
No comments:
Post a Comment