आज यह दीवार,

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शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...

Friday, September 23, 2011

उसे माँ कहते है।

उपर जिसका अंत नहीं
उसे आसमां कहते हैं,
जहा में जिसका अंत नहीं
उसे माँ कहते है।



जिन बेटो के जन्म पर माँ-बाप ने हंसी खुशी पेडे बाटे.....
वही बेटे जवान होकर कानाफुसी से माँ-बाप को बाटे
हाय, कैसी करुणता ?


माँ-बाप को वृद्धाआश्रम मेें रखने वाले ऐ युवान !
तनिक सोच कि, उन्होने तुझे अनाथआश्रम में नहीं रखा
कहीं तु उस भुल की सजा तो नहीं दे रहा हैं ना ?



माता-पिता क्रोधी है, पक्षपाती है, शंकाशील है,
ये सारी बाते बाद की हैं,
पहली बात ये है कि वो तुम्हारे माँ-बाप हैं।


डेढ़ किलो दूधी डेढ़ घण्टे तक उठाने से
तेरे हाथ दुख जाते है !
माँ को सताने से पहले इतना तो सोच......
तुझे नौ-नौ महिने पेट में
कैसे उठाया होगा ?


बचपन में जिसने तुझको पाला बुढे़पन में
उसको तूने नहीं संभाला तो याद रखना......
तेरे भाग्य में भड़केगी ज्वाला।


घर की माँ को रुलाये और
म्ंदिर की माँ को चुनरी ओढ़ाये.......
याद रखना.........
मंदिर की माँ तुझ पर खुश तो नहीं.......
शायद खफा जरुर होगी!


बचपन में गोद देने वाली को बुढ़ापे में
दगा देने वाला मत बनना..........


5 वर्ष का लाड़ला जो तेरे प्रेम की प्यास रखे
तो 50 वर्ष के तेरे माँ-बाप तेरे प्रेम की आँस क्यों न रखें ?


जिस दिन तुम्हारे कारण
माँ-बाप की आँख में आँसू आते हैं,
याद रखना......
उस दिन किया तुम्हारा सारा धर्म.........
आँसू में बह जाता हैं!



माँ और क्षमा दोनांे एक है क्योंकि,
माफ करने में दोनो नेक हैं !


माँ तुने तिर्थकरो को जाना है,
संसार तेरे ही दम से बना हैं,
तू मेरी पूजा है, मन्नत है मेरी,
तेरे ही कदमों में जन्नत है मेरी......


माँ ! पहले आँसु आते थे और तूं याद आती थी।
आज तू याद आती हैं और आँसु आते हैं।


तुने जब धरती पर पहला श्वास लिया
तब तेरे माता-पिता तेरे पास थे,
माता-पिता अंतिम श्वास लें तब तू उनके पास रहना.......


सुविधा के लिये जुदा होना पडे़ उसमें कोई हर्ज नहीं, किन्तु........
स्वभाव के कारण जुदा होना होना वो तो सबसे बड़ी शर्म हैं।


माँ-बाप की सच्ची विरासत पैसा और प्रसाद नहीं,
प्रामाणिकता और पवित्रता है................



संसार की दो बड़ी करुणता....
माँ बिना का घर,
घर बिना की माँ.........!!!


जिस मुन्ने को माँ-बाप ने बोलना सिखाया था.......
वह मुन्ना बड़ा होकर माँ-बाप को मौन रहना सीखाता हैं!!!


बँटवारे के समय घर की हर चीज के लिये
झगड़ा करने वाले बेटे दो चीज के लिए के उदार बनते है
जिसका नाम है माँ-बाप....................


माँ-बाप को सोने से न मढ़ो चलेगा।
हीरे से न जड़ो तो चलेगा पर उसका जिगर जले
और अंतर आँसु बहाये, वो कैसे चलेगा ?



कबुतर को दाना ड़ालने वाला बेटा
अगर माँ-बाप को दबाये तो......
उसके दाने में कोई दम नहीं।



माँ-बाप की आँखो में दो बार आँसू आते है
लड़की घर छोडे़ तब..........
लड़का मँुह मोड़े तब...................


घर का नाम मातृछाया व पितृछाया
मगर उसमें माँ-बाप की परछाई भी न पड़ने दे........
तो उसका नाम
पत्नीछाया रखना ठीक होगा..........


पत्नी पसंद से मिल सकती है,
माँ पुन्य से ही मिलती है।
पसंद से मिलने वाली के लिये,
पुण्य से मिलने वाली को मत ठुकराना।


पेट में पाँच बेटे जिसको भारी नहीं लगे थे,
वो माँ..................
बेटो के पाँच फ्लेट में भी भारी लग रही हैं!
बीते जमाने का यह श्रवण
का देश.......!!!! कौन मानेगा ?




जीवन के अंधेरे पथ मंे सूरज बनकर
रोशनी करने वाले माँ-बाप की जिंदगी में
अंधकार मत फैलाना...................


प्रेम को साकार होने का दिल हुआ
और माँ का सर्जन हुआ।


घर में वृद्ध माँ-बाप से बोले नहीं
उनको संभाले नहीं,
और वृद्धाश्रम में दान करे
जीवदया में धन प्रदान करे
उसे दयालु कहना..........
वो दया का अपमान हैं।


जब छोटा था तब माँ की शय्या गीली रखता था,
अब बडा हुआ तो माँ की आँखे गीली रखता हैं ।
रे पुत्र !
तुझे माँ को गीलेपन मंे रखने की आदत हो गई !.......



मातृभाषा
मातृभूमि व
माँ का
कोई विकल्प नहीं...............