आज यह दीवार,

मेरी प्रोफाइल देखें ...
शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...

Sunday, January 1, 2012

नज़र क्यों मिलाई थी आपने.....

इनकार ही था तो नज़र क्यों मिलाई थी आपने,
इकरार ही था तो नज़र क्यों चुराई थी आपने,

बस एक नज़र में दिल में अरमान दे दिया,
दिल के खाली कमरे को मेहमान दे दिया

नादान से दिल पर बिजली क्यों गिराई थी आपने,
इनकार ही था तो नज़र क्यों मिलाई थी आपने.

घायल हूँ दर्द लेकर अब इलाज कीजिये,
मेरे हर एक जख्म का हिसाब का हिसाब दीजिये

लेकर फिजा का बहाना, जुल्फ क्यों हिलाई थी अपने,
इनकार ही था तो नज़र क्यों मिलाई थी आपने....

इनकार ही था तो नज़र क्यों मिलाई थी आपने,
इकरार ही था तो नज़र क्यों चुराई थी आपने,

नशे में जमाना , ज़माने में हम भी .........


नशे में जमाना , ज़माने में हम भी,
कुछ इल्जाम हम पर भी आने दो ,

जो बेखबर है इस नशे से और नशे की दुनिया से ,
मत रोको उसे, मैखाने से दूर जाने दो ,

अंगूर की बेटी पक कर तैयार खड़ी है साकी,
जरा उसे पैमाने में सज जाने दो ,

सुना है सर्द हवाए , ईमान बदल देती है ,
एक झोका सनम , हमें भी खाने दो ,

उसका एक आंसू मुझे, उसके पास ला देगा ,
हटो यारो मुझे उसे, एक बार रुलाने दो ,

बहुत गुरूर है उसे अपनी एक एक अदा पे
आज मौका है, जरा मुझे भी आजमाने दो,

नशे में जमाना , ज़माने में हम भी ,
कुछ इल्जाम हम पर भी आने दो ...........


प्यासे ही रह जाते है मय पिलाने वाले......


आये दिन जो देते है ज़माने वाले,
वो हर जख्म नहीं होते दिखाने वाले,
यकीन ना हो तो कभी घर में ध्यान में देना,
खुद भूखे रह जाते है, तुमको खिलाने वाले.............

कभी साथी नहीं मिलता, कभी साकी नहीं मिलता,
और प्यासे ही रह जाते है, मय को पिलाने वाले......

दरियादिली मेरी जो समझी, तो लगभग टूट जाओगे,
कैसे तन्हा रह जाते है, किसी को मिलाने वाले........

इबादत का हर दस्तूर यही बयाँ करता है सनम,
खुद लाश बन कर घूमते है, मुर्दे जिलाने वाले............

जिस दिन भी निखारेंगे, हम खुद को दिलनशी,
फिर देखते ही रह जाएंगे, जुल्फे हिलाने वाले............

उनकी अजान भी, क्या रंग लायी है आज,
लो रस्ता भटक गए है मंजिल बताने वाले..........

बंद कमरों का मंजर सिर्फ आइनों ने देखा है,
घुट घुट रुक कर रोते है, खुलकर हँसाने वाले...........

मेरी लाश और चिता पर नज़रे कड़ी रखना,
कहीं हाथ ना जला बैठे, मुझको जलाने वाले
कही हाथ ना जला बैठे, मुझको जलाने वाले..............

तितलियो को घर में पाला नहीं जाता .........

जो तूफानों से खेलते है उन्हें, हवाओं से डर नहीं लगता
जो समंदर में पलते हो उन्हें घटाओ से डर नहीं लगता,
हर ठोकर से कुछ सीख कर गुजरा हूँ मैं,
अब मुझे मार कर सिखाने वाले रहनुमाओं से डर नहीं लगता
अब मुझे मार कर सिखाने वाले रहनुमाओं से डर नहीं लगता........

जश्न-ए-इजहार क्या ख़ाक होता जब बात कुछ बढ़ी नहीं,
कभी नशे में वो रहे, कभी नशे में हम रहे...........

एक कतरा बन कर समंदर पर सवार हूँ तेरे लिए,
सुना है- "डूबते को तिनके का सहारा बहुत होता है".........

पत्थरो से रस निकाला नहीं जाता,
फूलो पर वजन डाला नहीं जाता,
घर के चौबारे तक ही रहे, तो खूब जँचती है,
तितलियो को घर में पाला नहीं जाता
तितलियो को घर में पाला नहीं जाता .........