आज यह दीवार,

मेरी प्रोफाइल देखें ...
शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...

Tuesday, September 6, 2011

धूप है सर पे और न साया है !

इन तुजुर्बो ने ये सिखाया है
ठोकरे खा के इल्म आया है

क्या हुआ आज कुछ तो बतलाओ
क्यों ये आंसू पलक तक आया है !

दुश्मनों ने तो कुछ लिहाज़ किया
दोस्तों ने बहुत सताया है !

आसमां, ज़िंदगी, जहाँ, हालात
हम को हर एक ने आज़माया है !

अब रुकेंगे तो सिर्फ़ मंजिल पर
सोचकर यह क़दम उठाया है !

ऐ "नीरज" हम हैं उस मक़ाम पर आज
धूप है सर पे और न साया है !

इन महाशय ने सांप को ऐसे काटा कि हो गया दो इंच घाव


एक बदकिस्मत सांप की उस वक़्त आपातकालीन सर्जरी करनी पड़ी, जब कैलिफोर्निया के एक आदमी ने उसे दो बार काट डाला। जीव चिकित्सकों को उसके शरीर पर हुए दो इंच के घाव पर टांके लगाने पड़े। काटी गई जगह से मांस का कुछ हिस्सा भी ग़ायब था।

कैलिफोर्निया के डेविड सेंक को एक सांप को बुरी तरह काटने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया है। फॉक्स 40 द्वारा जेल में पूछने पर डेविड ने बताया कि उसे याद नहीं कि उसने सांप को कब काटा. डेविड ने बताया कि वो उस वक़्त नशे में था।

डेविड ने कहा "अगर सांप के मालिक का पता चले तो मुझे बताइएगा, मैं उससे माफ़ी मांगना चाहता हूं। मुझे ख़ुशी है कि सांप ज़िंदा है और जल्द ही ठीक हो जाएगा। मैं उसके इलाज में आए खर्चे की भरपाई की कोशिश करूंगा।"
 

 
 
 

महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी...

यह घटना उस समय की है, जब क्रांतिकारी रोशन सिंह को काकोरी कांड में मृत्युदंड दिया गया। उनके शहीद होते ही उनके परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। घर में एक जवान बेटी थी और उसके लिए वर की तलाश चल रही थी। बड़ी मुश्किल से एक जगह बात पक्की हो गई। कन्या का रिश्ता तय होते देखकर वहां के दरोगा ने लड़के वालों को धमकाया और कहा कि क्रांतिकारी की कन्या से विवाह करना राजद्रोह समझा जाएगा और इसके लिए सजा भी हो सकती है।

किंतु वर पक्ष वाले दरोगा की धमकियों से नहीं डरे और बोले, 'यह तो हमारा सौभाग्य होगा कि ऐसी कन्या के कदम हमारे घर पड़ेंगे, जिसके पिता ने अपना शीश भारत माता के चरणों पर रख दिया।' वर पक्ष का दृढ़ इरादा देखकर दरोगा वहां से चला आया पर किसी भी तरह इस रिश्ते को तोड़ने के प्रयास करने लगा।

जब एक पत्रिका के संपादक को यह पता लगा तो वह आगबबूला हो गए और तुरंत उस दरोगा के पास पहुंचकर बोले, 'मनुष्य होकर जो मनुष्यता ही न जाने वह भला क्या मनुष्य? तुम जैसे लोग बुरे कर्म कर अपना जीवन सफल मानते हैं किंतु यह नहीं सोचते कि तुमने इन कर्मों से अपने आगे के लिए इतने कांटे बो दिए हैं जिन्हें अभी से उखाड़ना भी शुरू करो तो अपने अंत तक न उखाड़ पाओ। अगर किसी को कुछ दे नहीं सकते तो उससे छीनने का प्रयास भी न करो।' संपादक की खरी-खोटी बातों ने दरोगा की आंखें खोल दीं और उसने न सिर्फ कन्या की मां से माफी मांगी, अपितु विवाह का सारा खर्च भी खुद वहन करने को तैयार हो गया।

विवाह की तैयारियां होने लगीं। कन्यादान के समय जब वधू के पिता का सवाल उठा तो वह संपादक उठे और बोले, 'रोशन सिंह के न होने पर मैं कन्या का पिता हूं। कन्यादान मैं करूंगा।' वह संपादक थे- महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी।