आज यह दीवार,

मेरी प्रोफाइल देखें ...
शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...

Monday, November 21, 2011

जो भारत को इंडिया कहते है


वे मात्र मेकोले के दिये वचनो का पालन कर रहे है


इंडिया बोलने से पहले विचारे
:

क्या अर्थ है इंडिया का
? ...... कुछ नहीं ...
हर भारतीय के नाम का अर्थ है
....

हमारे यहाँ बिना भावार्थ के नाम रखने की असांस्कृतिक परंपरा नहीं है


-
अंग्रेज़ो को भारत नाम बोलने मे परेशानी होती थी
-अंग्रेज़ इंडियन उस व्यक्ति को कहते है जो उनके हिसाब से जाहिल माना जाता है,
-अंग्रेज़ इंडियन उस व्यक्ति को कहते जो पाषाण कालीन जीवन जीता है

लेकिन हमारे भारत नाम का अर्थ है

भारत
: भा = प्रकाश + रत = लीन ( हमेशा प्रकाश, ज्ञान मे लीन )
इतना महान अर्थ से परिपूर्ण देश का नाम है


फिर क्यूँ


हम ऐसे लोगो के दिये नाम
'इंडिया' का इस्तेमाल करें जिन्हें
अपना पिछवाड़ा साफ करने की भी तमीज नहीं है
?

क्यूँ हम अपने ही देश को गाली दें
?

भारत और इंडिया मे काफी अंतर है

फेसबुक का जनक एक भारतीय है


सोशियल वेबवाइट एफबी यानी फेसबुक के यूजर्स में से एक फीसदी लोगों को यह

पता नहीं होगा कि इसके फाउंडर मार्क जुकरबर्ग नहीं बल्कि अप्रवासी भारतीय
दिव्य नरेंद्र है। मार्क ने तो उनके आइडिए को कॉपी करके एफबी बनाई थी।

भारतीय"बिना फेसबुक जिंदगी बेनूर"आज के युवाओं सोशियल वेबसाइट फेसबुक के

पति कुछ ऎसा ही नजरिया रखते हैं। यही वजह है कि दुनिया की सबसे फेवरेट
साइट्स में एफबी (फेसबुक) का नाम शुमार है। इसके फाउंडर के तौर पर मार्क
जुकरबर्ग को दुनिया में ऎसी अनोखी प्रतिभा का धनी मान लिया गया है,
जिन्होंने कॉलेज के दिनों में ही ऎसा कालजयी आविष्कार कर दिखाया।

उनके जीवन पर फिल्म भी बन चुकी है, जिसने सफलता के झंडे गाड़े हैं। लेकिन

फेसबुक की असली सच्चाई जानकर आपको खासी हैरानी हो सकती है और खुशी भी।
फेसबुक के असली निर्माता मार्क जुकरबर्ग नहीं बल्कि अप्रावासी भारतीय
दिव्य नरेंद्र हैं, जिनके आइडिए को कॉपी कर मार्क ने फेसबुक बना डाली और
दुनिया में शोहरत हासिल कर ली। फेसबुक के पीछे के इंडियन फेस को आइए
जानें करीब से।

महज 29 साल के दिव्य नरेंद्र अमरीका में रहने वाले अप्रावासी भारतीय हैं।

उनके माता-पिता काफी समय पहले से अमरीका में ही आ बसे हैं। दिव्य का जन्म
18 मार्च 1982 को न्यूयार्क में हुआ था। जाहिर है कि दिव्य के पास भी
अमरीकी नागरिकता है। उनके डॉक्टर पिता बेटे को भी डॉक्टर बनाना चाहते थे,
लेकिन दिव्य इसके लिए तैयार नहीं थे। उनका सपना तो था उद्यमी बनने का।
अपने दम पर दुनिया को कुछ कर दिखाने का।

मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक को अपना बताकर दुनियाभर में विस्तार शुरू किया

तो हंगामा हो गया। दिव्य और उनके दोस्तों ने कोर्ट में उनके खिलाफ केस
ठोक दिया। दिव्य का कहना था कि यह उनका आइडिया था। जुकरबर्ग को कहीं
फ्रेम में थे ही नहीं। बाद में उन्होंने दिव्य और दोस्तों के आइडिए को
कॉपी कर फेसबुक शुरू कर दी। अमरीकी कोर्ट ने पूरे मामले की गहन सुनवाई
की। कोर्ट ने इसके बाद दिव्य के दावे को सही पाया और जुकरबर्ग को आदेश
दिया कि वे हर्जाने के तौर पर दिव्य और उनके दोस्तों को 650 लाख डालर की
राशि अदा करें।

जाहिर सी बात है कि दिव्य इससे संतुष्ट नहीं थे। उनका कहना था कि हर्जाने

का राशि फेसबुक की मौजूदा बाजार कीमत के आधार पर तय की जानी चाहिए। हाल
ही में गोल्डमैन स्नैच ने फेसबुक की बाजार कीमत 50 बिलियन डॉलर आंकी थी।
उन्होंने एक बार फिर मुकदमा दायर किया, लेकिन अमरीकी कोर्ट ने पिछले
फैसले को ही बरकरार रखा। अमरीकी कोर्ट के फैसले के आईने में देखा जाए तो
जो प्रसिद्धि आज मार्क जुकरबर्ग को मिली है, उसके सही हकदार दिव्य
नरेंद्र थे।



फेसबुक का जन्म असल में हार्वर्ड कनेक्शन नाम की सोशल साइट के डिजाइन के

दौरान हुआ था। दिव्य इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे और काफी आगे बढ़ चुके
थे। लंबे समय बाद जुकरबर्ग एक मौखिक समझौते के आधार पर इस प्रोजेक्ट का
हिस्सा बने थे। यहां काम करने के दौरान उन्होंने पूरी प्रक्रिया देखी और
आखिर उस प्रोजेक्ट को फेसबुक नाम देकर रजिस्टर्ड करा लिया। जब उन्होंने
इसे अमली जामा पहनाना शुरू किया तो दिव्य और उनके दोस्तों ने तीखा विरोध
किया। इसे लेकर उनकी जुकरबर्ग से खासी तकरार भी हुई। आखिर मामला हद से
आगे बढ़ता लगा तो यूनिवर्सिटी प्रशासन ने हस्तक्षेप कर दिव्य को अदालत
जाने की सलाह दी। अदालत ने फैसला जरूर दिया, लेकिन इंसाफ नहीं कर पाई।

जुकरबर्ग के साथ मुकदमेबाजी से दिव्य निराश जरूर हुए, लेकिन उन्होंने खुद

को हताश नहीं होने दिया। उन्होंने साथ ही दूसरे प्रोजेक्ट सम जीरो पर काम
शुरू कर दिया। उनका यह प्रोजेक्ट आज खासा कामयाब है। अपने को दिव्य किस
रूप में देखते हैं, फेसबुक के संस्थापक या समजीरो के सीईओ, पूछे जाने पर
उनका सीधा जवाब होता है, मैं बस एक कामयाब उद्यमी के रूप में पहचाना
जानना चाहता हूं। जिसने अपने और समाज के लिए कुछ किया हो। फेसबुक के
अनुभव से मिली सीख के बारे में पूछने पर दिव्य मजाक करते हैं,"मुझे
हाईस्कूल में ही वेब प्रोग्रामिंग सीख लेनी चाहिए थी।"

ऎसा नहीं कि दिव्य के फेसबुक की खोज करने की बात लोगों को मालूम नहीं है।

हाल ही में जुकरबर्ग पर बनी फिल्म"द सोशल नेटवर्क"में उनका किरदार भी रखा
गया था। आखिर उनके जिक्र के बिना फेसबुक की कहानी भला पूरी कैसे हो सकती
थी। इस बारे में पूछने पर दिव्य बताते हैं,"पहले मुझे डर था कि फिल्म में
मुझे खलनायक के तौर पर प्रस्तुत किया जा सकता है, लेकिन फिल्म देखने के
बाद मेरा डर दूर हो गया।"दिव्य अपनी जिंदगी के फंडे के बारे में पूछने पर
बताते हैं,"आपको अपनी नाकामयाबियों से सीखना आना चाहिए। एक बार नाकामी से
सीख लेने के बाद आपको तत्काल अगला प्रयास शुरू कर देना चाहिए।"