आज यह दीवार,

मेरी प्रोफाइल देखें ...
शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...

Thursday, September 8, 2011

मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी...

मुझसे क्यों खेलती है जिंदगी?
क्या मुझे झेलती है जिंदगी?
सच कहू मुझको लगता है
मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी


नन्हे कदम, जग नया नये रिश्ते
सांचो मे ढलते हम, हम से बदलते रिश्ते
दूर के रिश्ते पास के रिश्ते
रिश्तो मे उलझकर निकलते से रिश्ते



क्या बस रिश्तो को समेटती है ज़िंदगी..
सच कहू मुझको लगता है
मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी

रोती  खुशी, हसती खुशी, चिल्लती खुशी, बलखाती खुशी
बाहो मे भरकर, गले से लिपटकर
अपनो का अहसास कराती खुशी

फिर आँख मिचौली क्यू खुशी से खेलती है ज़िंदगी?
सच कहू मुझको लगता है
मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी



आनी मौत बचकानी मौत,शमशानी मौत, अंजानी मौत पहचानी मौत
मौत से लड़ते लड़ते एक दिन आ जानी मौत
बहुत खुशनसीब होते है है वो नसीब वाले
जिन्हे नसीब होती है रूहानी  मौत

हर चौराहे पर है मौत खड़ी, बस उसे ठेलती  है ज़िंदगी?
सच कहू मुझको लगता है,,मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी
सच कहू मुझको लगता है...मेरी मौत को ढकेलटी है ज़िंदगी..........

न्याय के मंदिर पर आतंकी कहर ....


तीन महीने की शांति के बाद देश की जनता एक बार फिर बुधवार सुबह हुए धमाकों से दहल गई। इस बार भारत के दुश्मनों ने भारत की राजधानी में स्थित न्याय के मंदिर को निशाना बनाया है।


 
दिल्ली हाई कोर्ट के बाहर हुए बुधवार सुबह हुए एक शक्तिशाली धमाके में कई लोगों को अपनी जान गंवाना पड़ी। गौरतलब है कि तीन महीने पहले 13 जुलाई 2011 को मुंबई में कई जगहों पर कुछ अंतराल में हुए धमाकों ने पूरे भारत को थर्रा दिया था।


इस धमाके का गुबार अभी थमा भी नहीं कि राजनेता, नौकरशाह और जनता की सुरक्षा के जिम्मेदार हमेशा की तरह वही पुराने रटे-रटाए सरकारी बयान दे रहे हैं। चिथड़े हुए इन बयानों के सुराखों में कई सवाल झांकते नजर आ रहे हैं। जनता का विश्वास खोती सरकार राजधानी में हुए इस धमाके से सकते में है।
इसी साल 25 मई को भी दिल्ली हाई कोर्ट के बाहर कार पार्किंग में कम तीव्रता का धमाका हुआ था। हांलाकि इन धमाकों में कोई भी घायल या हताहत नहीं हुआ था पर इसके बाद सुरक्षा को और अधिक पुख्ता करने को लेकर कई दावे और कवायदे की गई थीं। हर बार की तरह कुछ दिनों तक चौकस रहने के बाद जैसे ही सुरक्षा थोड़ी ढीली हुई, वैसे ही आतंकी अपने घृणित इरादों में कामयाब हो गए।
लोकतांत्रिक आंदोलन से कड़ाई से निपटने वाले गृहमंत्री अभी मुंबई धमाकों की कालिख साफ करने में लगे ही थे कि दिल्ली हाई कोर्ट में हुए धमाके ने उनके दामन पर एक और निशान लगा दिया। बार-बार भारत के प्रमुख शहरों को निशाना बनाते आतंकी स्पष्ट रूप से अपना संदेश दे रहे है कि वे जब चाहे अपने इरादों में कामयाब हो सकते हैं।
आतंकियों के बढ़े हुए हौसले का एक कारण भारत का लचर कानून भी है। हाल के दिनों में भारतीय कानून की सबसे बड़ी खामियां उजागर हुई। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की सजा-ए-मौत पर राष्ट्रपति द्वारा रहम की अपील खारिज करने के बाद भी तमिलनाडु विधानसभा में उन्हें माफी दिए जाने को लेकर इतना हंगामा हुआ कि अभियुक्तों की फांसी आगे बढ़ाना पड़ी। मुंबई हमले के एकमात्र जीवित पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब को भी अब तक सजा नहीं हुई है।
केंद्र सरकार का पूरा ध्यान अभी अपनी सत्ता बचाने में लगा है। घोटालों और भ्रष्टाचार के मामले लगातार उजागर होते जा रहे हैं। इस पर से आतंकी हमले सीधे-सीधे सरकार की काबिलियत पर सवाल उठाने लगे हैं। आखिर कब तक इस देश की जनता पीड़ित होती रहेगी? कब तक देश के दुश्मनों को सरकारी मेहमान बनाया जाता रहेगा? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब सरकार को तत्काल देना होगा।

वहीँ है मेरा हिन्दुस्तां :

India flag

 

जहाँ हर चीज है प्यारी सभी चाहत के पुजारी
प्यारी जिसकी ज़बां वही है मेरा हिन्दुस्तां

जहाँ ग़ालिब की ग़ज़ल है वो प्यारा ताज महल है
प्यार का एक निशां वही है मेरा हिन्दुस्तां

जहाँ फूलों का बिस्तर है जहाँ अम्बर की चादर है
नजर तक फैला सागर है सुहाना हर इक मंजर है
वो झरने और हवाएँ, सभी मिल जुल कर गायें
प्यार का गीत जहां  वही है मेरा हिन्दुस्तां

जहां सूरज की थाली है, जहां चंदा की प्याली है
फिजा भी क्या दिलवाली है, कभी होली तो दिवाली है
वो बिंदिया चुनरी पायल,वो साडी मेहंदी काजल
रंगीला है समां, वही है मेरा हिन्दुस्तां

कही पे नदियाँ बलखाएं, कहीं पे पंछी इतरायें
बसंती झूले लहराएं, जहां अन्गिन्त हैं भाषाएं
सुबह जैसे ही चमकी, बजी मंदिर में घंटी
और मस्जिद में अजां, वही है मेरा हिन्दुस्तां

कहीं गलियों में भंगड़ा है, कही ठेले में रगडा है
हजारों किस्में आमों की, ये चौसा तो वो लंगडा है
लो फिर स्वतंत्र दिवस आया, तिरंगा सबने लहराया
लेकर फिरे यहाँ-वहां, वहीँ है मेरा हिन्दुस्तां :D

आर्य - राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त


हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी
भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है

यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं
विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं
संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े
पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े

वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे
वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा

संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी
निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी
फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में

वे मोह बंधन मुक्त थे, स्वच्छंद थे स्वाधीन थे
सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे
मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे
विख्यात ब्रह्मानंद नद के, वे मनोहर मीन थे

किस्मत को बदलना है तो ऐसे सोचें....

किस्मत को बदलना है तो ऐसे सोचें....

कई लोग अपनी सारी असफलता और परेशानी को भगवान या किस्मत पर छोड़ देते हैं। जब भी किसी काम में अच्छे परिणाम नहीं मिलते तो लोग किस्मत को कोसने लगते हैं, या अपनी हार को भगवान के मत्थे मढ़ देते हैं।

कई लोग यह सोचकर दोबारा प्रयास भी नहीं करते कि शायद किस्मत में लिखा ही नहीं है। ऐसे में निराशा हम पर हावी हो जाती है। हम कोशिशें बंद कर देते हैं और फिर निष्क्रिय रहना हमारा स्वभाव बन जाता है।

एक राजा के दरबार में विरोचन और मुनि दो गायक थे। विरोचन की गायकी का पूरा दरबार कायल था, हर कोई उसे ही सुनता था। मुनि को यह बात अखरती थी। धीरे-धीरे उसने इसे अपनी किस्मत समझकर समझौता कर लिया। हर कोई विरोचन को मुनि से बेहतर मानता था क्योंकि दरबार में ज्यादातर विरोचन ही सुने जाते थे।

लगातार खुद की उपेक्षा होते देख, मुनि ने अपना नियमित अभ्यास भी छोड़ दिया। वह रोज शिव मंदिर के सामने बैठकर खुद की किस्मत और भगवान को कोसता रहता। एक दिन भगवान ने सोचा क्यों ना इसकी भी सुन ली जाए। मुनि मंदिर में बैठा भगवान को अपनी खराब किस्मत के लिए कोस रहा था तभी शिवजी प्रकट हो गए। उन्होंने कहा मुनि तू क्या चाहता है।

मुनि ने कहा मुझे भी विरोचन की तरह दरबार में किसी खास मौके पर गाने के लिए मौका चाहिए, लेकिन मेरी किस्मत में ऐसा मौका लिखा ही नहीं है। भगवान ने कहा ठीक है मैं तुझे एक मौका देता हूं। कुछ दिनों बाद राजा के दरबार में कुछ दूसरे राजा और विद्वान आए। उनके मनोरंजन के लिए विरोचन को बुलाया गया। लेकिन उस दिन विरोचन का गला खराब था। राजा ने मुनि को गाने का आदेश दिया।

चूंकि मुनि तो रियाज ही नहीं करता था, इस कारण वो ठीक से गा नहीं पाया। राजा को यह बात बुरी लगी। उसने मुनि को हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर दिया। दुखी मुनि मंदिर पहुंचा तो वहां शिवजी पहले से बैठे थे। मुनि ने उनसे फिर शिकायत की। उसने कहा मौका दिया तो पहले बता तो देते मैं थोड़ा अभ्यास कर लेता। शिवजी हंस दिए।

उन्होंने समझाया कि मुनि जीवन में कोई भी अवसर बताकर नहीं आता, किस्मत कब खुल जाए, कब तुम्हें जीवन का सबसे बड़ा अवसर मिल जाए, यह तय नहीं है। हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। तुमने तो आस ही छोड़ दी, अभ्यास छोड़ दिया इसलिए तुम्हें आज अपमानित होना पड़ा।

आसुओ ने हँसना सिखा दिया...

 
मेरी एक आँख मे के आसू ने दूसरी आँख के आसू से पूछा,
कैसे हो...???????


खुशी का आसू बोला: बहुत खुश हू यार, आज क्या बताउ तुझे...
तू कैसा है?
दुख का आसू बोला: बहुत दुखी हू यार.. क्या बताउ तुझे
एक शरीर एक आत्मा, एक जीवन दो सोच कैसे?
दो एहसास वो भी साथ साथ...
तब दिल बोला यही जीवन है
यही जीवन की सच्चाई है.
इंसान यदि जीना चाहे तो फड़कता है
यदि मरना चाहे तो ता तड़पता है..
अगर ये जीवन है तो ये बनाया क्यू?
भौतिक साधनो से इसे सजाया क्यू?
इंसान का मन इसमे लगाया क्यू?
भगवान बोला: मैने जीवन इसलिए दिया की तू जी सके,
दूसरे के गम विश बना शंभू की तरह पी सके.
पर तूने खुद मायाजाल बनाया.
अपना मन इसमे बसाया
आज एक बात समझ मे आई है
सही मायने मे ये दुनिया पराई है
इसीलिए
किसी को मलहम ना दे सके तो आँखे नम ना दे,
किसी को खुशी ना दे सके तो कभी गम ना दे..