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शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...

Thursday, January 26, 2012

गणतंत्र दिवस पर विभिन्न झाँकी


छाएगा छत्तीसगढ़ और जयपुर का रंग

 

राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस की तैयारियों जोरों-शोरों से चल रही है। एक तरफ स्कूली बच्चे रोज इंडिया गेट पर रिहर्सल करते नजर

आते हैं तो वहीं दूसरी तरफ सेना के जवान भी रिहर्सल में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे। हाँ, अलग-अलग राज्यों की झाँकियाँ भी तैयार

हो रही हैं। 

चलिए देखते हैं गणतंत्र दिवस के मौके पर छत्तीसगढ़ और राजस्थान की झाँकियों में क्या खास होगा।


छत्तीसगढ़ की कोटमसर गुफा : छत्तीसगढ़ राज्य की झाँकी में कोटमसर गुफा नजर आएगी। कोटमसर गुफा छत्तीसगढ़ के कांगेर वैली

राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। कोटमसर की गुफा अपने प्रागेतिहासिक अवशेषों, अद्भुत प्राकृतिक संरचनाओं और विस्मयकारी सुंदरता के

लिए प्रसिद्ध है। इसकी खोज 1951 में प्रसिद्ध भूगोलशास्त्री डॉ. शंकर तिवारी ने की थी। 

स्थानीय भाषा में कोटमसर का अर्थ है पानी से घिरा किला। भूगर्भशास्त्रियों ने इस गुफा में प्रागेतिहासिक मनुष्यों के रहने के अवशेष भी

पाए हैं। लाइम स्टोन से बनी इस गुफा की बाहरी और आंतरिक सतह के अध्ययन से पता चलता है कि इसका निर्माण लगभग 250

करोड़ वर्ष पूर्व हुआ होगा। छत्तीसगढ़ के बस्तर के कांगेर वैली राष्ट्रीय उद्यान में हर वर्ष लगभग 60 हजार लोग इनका अवलोकन करने

आते हैं। अब इस झाँकी को आप दिल्ली में होने वाली गणतंत्र दिवस परेड में देख पाएँगे। 

जयपुर का रंग राजस्थान की झाँकी में : राजस्थान की झाँकी में जयपुरशहर का रंग नजर आएगा। जयपुर शहर के निर्माता महाराजा

सवाई जयसिंह की ज्योतिष के प्रति गहन रुचि थी। उन्होंने ज्योतिष शास्त्र के ग्रंथ 'सूर्य सिद्धांत' का अध्ययन किया तथा यह निश्चित

किया कि इन ग्रंथों के आधार पर सारणियाँ बनाकर आकाशीय ग्रह स्थिति का प्रत्यक्षीकरण करना चाहिए परंतु इसकी पूर्ति बिना यंत्रों के

संभव नहीं थी। अतः उनके मन में सन्‌ 1718 में वेधशाला के निर्माण का विचार उत्पन्न हुआ। 


इस प्रकार छह वर्षों के निरंतर परिश्रम के बाद तथा धातु यंत्रों के वेधकार्यों से संतुष्ट होने पर दिल्ली स्थित तत्कालीन जयसिंहपुरा नामक

स्थान पर सन्‌ 1724 में प्रथम पाषाण वेधशाला का निर्माण कराया। जयपुर स्थित वेधशाला का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह ने सन्‌

1728 में प्रारंभ किया। जयपुर वेधशाला यंत्रों की संख्या अधिक होने व राशि वलय नामक यंत्र होने के कारण महत्वपूर्ण है। 

वर्तमान मे उक्त सभी वेधशालाएँ भारत वर्ष व विश्व के मानचित्र पटल पर 'जंतर मंतर' के नाम से प्रसिद्ध है। इस झाँकी के अग्रभाग में

नाड़ी यंत्र के साथ जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह की प्रतिमा को दर्शाया गया है जिसमें जयपुर के विशेष स्थापत्य द्वार का नमूना बनाया गया है। 

झाँकी के पार्श्व भाग (ट्रेलर भाग) में राम यंत्र, वृहद् एवं लघु सम्राट यंत्र, जय प्रकाश यंत्र आदि के साथ जयपुर के स्थापत्य से सम्बंधित

विभिन्न डिजाइनों की जालियाँ, कँगूरे एवं झरोखों को प्रदर्शित किया गया है। इसके अतिरिक्त ज्योतिषियों एवं पर्यटकों के थ्रीडी मॉडल भी

विभिन्न मुद्राओं में दर्शाए गए हैं। संपूर्ण झाँकी के आगे नाड़ी यंत्र के साथ चार कलश धारिणी एवं पाँच ज्योतिषियों का दल जंतर-मंतर से

संबंधित श्लोकों का मंत्रोच्चार करते हुए पैदल चलते नजर आएँगे।