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शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...

Friday, February 3, 2012

गायत्री मंत्र का वर्णं






भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् 


गायत्री मंत्र संक्षेप में

 

 गायत्री मंत्र (वेद ग्रंथ की माता) को हिन्दू धर्म में सबसे उत्तम मंत्र माना जाता है. यह मंत्र हमें ज्ञान प्रदान करता है. इस मंत्र का मतलब है - हे प्रभु,


क्रिपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही रास्ता दिखाईये. यह मंत्र सूर्य देवता (सवितुर) के लिये प्रार्थना रूप से भी माना


जाता है.


हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं


आप हमारे दुख़ और दर्द का निवारण करने वाले हैं



आप हमें सुख़ और शांति प्रदान करने वाले हैं


हे संसार के विधाता


हमें शक्ति दो कि हम आपकी उज्जवल शक्ति प्राप्त कर सकें


क्रिपा करके हमारी बुद्धि को सही रास्ता दिखायें



 मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या

 

 गायत्री मंत्र के पहले नौं शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं


= प्रणव


भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला


भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला


स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला


तत = वह, सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल


वरेण्यं = सबसे उत्तम


भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला


देवस्य = प्रभु


धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)


धियो = बुद्धि, यो = जो, नः = हमारी, प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)


 

 इस प्रकार से कहा जा सकता है कि गायत्री मंत्र में तीन पहलूओं वर्णं है - स्त्रोत, ध्यान और प्रार्थना.