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शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...

Friday, February 3, 2012

एक नदी, जिसमें आज भी बहकर आता है सोना

              


भारतीय बाजार में सोना तीस हजारी बनने की ओर अग्रसर है। लेकिन यहां जिला यमुनानगर में बह रही सोन नदी जिसे अब लोग सोम नदी के नाम से पुकारते हैं आज भी यह साबित कर रही है कि भारत सोने की चिड़िया ही नहीं, यहां की नदियों में भी सोना बहता है। इस नदी में आजकल पर्वत मालाओं से बहकर आने वाले पानी रेत में सोना रहा, जिसे लोग निकाल रहे हैं। सोना निकालने के लिए जिला प्रशासन द्वारा बाकायदा ठेका दिया जाता है।

आपको सुनने में जरूर अटपटा लगता होगा। लेकिन इस नदी को प्राचीनकाल में सोन नदी के नाम से इसीलिए पुकारा जाता था कि इसमें सोने के कण बहकर आते हैं। यमुना नदी में गिरने वाली यह सोम नदी यमुनानगर के विभिन्न क्षेत्रों से गुजरते हुए खूब भारी तबाही मचाती है। लेकिन बाद में अपने साथ सोने के कण भी भारी मात्रा में बहाकर लाती है। सोमनदी से सोने के कण निकालने के लिए ठेकेदार अनुभवी लोगों को दिहाड़ी पर रखते हैं।




शांत रहकर केवल मैनुअल बड़े पारखी तरीके से ही यह काम होता है। पारखी व्यक्ति पहले नदी की मिट्टी को चेक करता है कि कहां सोने के कण हैं। कहां कम हैं और कहां अधिक। उसके बाद वे अपने काम में जुट जाते हैं। नदी के साथ लगते गांव के सरपंच सुरेंद्र का कहना है उनके बुजुर्ग बताया करते थे कि कई कई ठेकेदारों के काफी संख्या में आदमी सोने के कण निकाला करते थे। लेकिन अब सोने के कणों को निकालने वाले पारखी बहुत कम बचे हैं।




यमुनानगर के उपायुक्त अशोक सांगवान का कहना है कि इस काम को करने वालों की कमी है। अब केवल एक ही ठेकेदार इस काम को करने वाला रह गया है। उन्होंने बताया कि इस सीजन में ठेकेदार को एक लाख 22 हजार में ठेका दिया गया है। जितना भी सोना ठेकेदार निकालेगा वह उसी का होगा।



 

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