आज यह दीवार,

मेरी प्रोफाइल देखें ...
शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...

Wednesday, December 7, 2011

दोस्तों जिंदगी दर-बदर हो गई...



सभी दोस्तों से ये पुरखुलूस गुज़ारिश है, कि एक बार इस ग़ज़ल को पढ़ने की ज़हमत ज़रूर करें। बड़े

अरसे बाद क़लम उठाई है,

शायद ग़लतियां भी बहुत हों। ग़ज़ल कभी बहुत ज्यादा लिखी नहीं। कभी-कभार काग़ज़ पर अल्फ़ाज़

उकेरने की गुस्ताखियां की हैं।

इस बार भी शायद कुछ ऐसा ही है। लिखने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन किसी पैमाने पर उतरने

वाली ग़ज़ल बन नहीं पाई।

मीटर और पैरामीटर से अपना दूर तक भी वास्ता नहीं है। लिहाज़ा उसके लिए तो ज़रूर माफ़ करें। अगर

आपको पसंद आ जाए तो इस

अदीब की इसलाह ज़रूर करें।






जब से उसकी टेढ़ी नज़र हो गई।

दोस्तों जिंदगी दर-बदर हो गई।।


वो क्या गए हमसे रूठकर यारों।

महफिले और मुख़्तसर हो गईं।।


नफ़रतों के दायरे जब से बढ़ने लगे।

दिल की गलियां भी और तंग हो गईं।।


संगदिल के संग रहना ही ज़ेरेनसीब था।

जीती बाज़ी हारना अब किस्मत हो गई।।


उजले लिबास में लोग दिल के काले हैं।

मसीहाओं की अब यही पहचान हो गई।।


प्यार की बस्ती में धोखा ही धोखा है।

रंग बदलना लोगों की फितरत हो गई।।


प्यार, नफ़रत, ग़म, गुस्सा और फरेब।

ज़िंदगी की अब यही कहानी हो गई।।


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