जिंदगी से जी भर गया कब का।
टूट कर मैं बिखर गया कब का ।।
***
इक मुहब्बत का था नशा मुझको।
वो नशा भी उतर गया कब का।।
***
चाहता था तुझे दिल-ओ-जां से।
वक़्त वो तो गुज़र गया कब का।।
***
देख हालत नशे के मारों की।
ख़ुद-ब-ख़ुद वो सुधर गया कब का।।
***
देख कर छल फ़रेब दुनिया के।
एक "इंसान" मर गया कब का।।
टूट कर मैं बिखर गया कब का ।।
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इक मुहब्बत का था नशा मुझको।
वो नशा भी उतर गया कब का।।
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चाहता था तुझे दिल-ओ-जां से।
वक़्त वो तो गुज़र गया कब का।।
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देख हालत नशे के मारों की।
ख़ुद-ब-ख़ुद वो सुधर गया कब का।।
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देख कर छल फ़रेब दुनिया के।
एक "इंसान" मर गया कब का।।
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