आज यह दीवार,

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शूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुर्जा, पुर्जा कट मरे, कबहुं छाड़े खेत (बहादुर, शूरवीर वही है, जो धर्म के लिए लड़े, चाहे शरीर का पुर्ज़ा पुर्ज़ा कट जाए, पर जंग का मैदान वह कभी छोड़े) हमारा धर्म है सचाई, भारतीयता, ईमानदारी, भाईचारा...

Sunday, August 13, 2017

कुहरे की इक चादर ओढ़े, देखो जाड़ा आया है |


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कुहरे की इक चादर ओढ़े, देखो जाड़ा आया है |
लगातार गिरते पारे ने, फिर कुहराम मचाया है||

इसके आगे आज सभी ने, अपना शीश नवाया है |
सूरज का तेज हुआ मद्धिम, चाँद खूब मुस्काया है ||

हर कोई यहाँ दिख रहा है, मख़मली दुशाला ओढ़े |
कपड़े सबके ऊनी फिर भी, साथ न यह जाड़ा छोड़े ||

कही ठिठुरते दादा दादी, कही काँपती नानी है |
कही रात भर गिरता पाला, कही बर्फ सा पानी है ||


सन-सन चलती हवा रात दिन, थर-थर हाड़ कपाती है |
जलता अलाव मिले जहाँ भी, भीड़ वही लग जाती है ||
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बच्चे हों या बूढ़े जवान, सबकी एक कहानी है |

रोज नहाने में ही अक्सर, होती आनाकानी है ||

कम्बल ओढ़े आग तापते, देह नही गरमाती है |
बिस्तर कोई जैसे छोड़े, गर्म चाय ललचाती है ||

साथ बैठ मूंगफली खाते, आपस में गपियाते हैं |
जिस दिन भी छुट्टी हो अपनी, पिकनिक खूब मनाते हैं ||


छत पर बैठे धूप सेंकते, पेपर पढ़ते जाते हैं |
अच्छी बुरी खबरों के बीच, मन ही मन मुस्काते हैं ||
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साथ मटर छिलते सारे गर, होता कुछ बनवाना है |
जाड़े भर खाने को मिलता, तिल गुड़ लाई दाना है ||

गरम पकौड़ी चिप्स रेवड़ी, मम्मी लगी बनाने में
शकरकंद आलू सिंघाड़ा, सबको मिलता खाने में ||

बच्चे पतंग खूब उड़ाते, बाघ कटा चिल्लाते हैं |
जाड़े में मस्ती वो करते, दिनभर उधम मचाते हैं ||

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